tag:blogger.com,1999:blog-5592503838077116876.post4814628327102947599..comments2022-10-29T13:31:54.572+05:30Comments on भनसाघर: अनुवाद की मारी, बाजार से बेचारीरजनीश प्रकाशhttp://www.blogger.com/profile/15667414585092836875noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5592503838077116876.post-66876242773991135382012-09-15T12:02:21.221+05:302012-09-15T12:02:21.221+05:30रजनीश, ब्रा वाली गंजी वाला किस्सा बेहद रोचक है| हि...रजनीश, ब्रा वाली गंजी वाला किस्सा बेहद रोचक है| हिंदी की दुर्दशा का रोना बेहद पुराना हो गया है| हिंदी में उचित अनुचित जो भी परिवर्तन आये हैं, उसके लिए अंग्रेजी जिम्मेवार नहीं है| हिंदी अख़बारों और पत्रिकों में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग एक आम बात है| कुछ एक साल पहले तक जब मैं हिंदी अख़बार पढ़ा करता था, प्रधान मंत्री पीम नहीं हुआ करते थे| आपके इस लेख में भी अंग्रेजी शब्दों की जगह दी गयी है — डिसाइड, परफेक्ट, इंटर्नशिप, डिप्लोमेटिक| हर कोई तरक्की की चाह में आर्थिक रूप से समृद्ध जमात की भाषा अपना रहा है| गाँव-कस्बों के लोग हिंदी बोल रहे हैं| शहरों में लोग अंग्रेजी अपना रहे हैं| कई परस्तिथियों में अंग्रेजी अनिवार्य हो जाती है—जैसे किसी तेलुगु, मलयाली से बात करना हो| मुझे खुद ही नयी हिंदी पसंद नहीं| हिंदी में अंग्रेजी का बेसिर-पैर उपयोग नहीं होना चाहिए| हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों को अपनी भाषा पर गर्व करना सीखना होगा|Pritamnoreply@blogger.com