शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

नंदन ... बचपन के नंदन-कानन में

कोरोना ने साल 2020 का वैसे भी कबाड़ा कर रखा है। द आर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन की जबान पर मास्क महोदय पहरा दे रहे है। आना-जाना, खेलना-खिलखिलाना सब पर हजारों दिशा-निर्देशों की नकेल पड़ी है। ऐसे में आज जब इंटरनेटी दैनिक टहलकदमी में नंदन और कादंबिनी के प्रकाशन पर विराम से वाकिफ हुआ तो साल 2020 की मनहूसियत कुछ और गहरी होती हुई मालूम हुई । ... कुछ रिश्ते मील का पत्थर होते हैं। आपके सफर को पारिभाषित करते हैं। नंदन के साथ भी रिश्ता कुछ ऐसा ही है। यह रिश्ता शब्दों का भी है और संस्कार का भी ।

बचपन का स्वर्गिक संसार चिंता-फिक्र से कोसों दूर कल्पना, कुतूहल और दोस्तों के साथ खूब धमाचौकड़ी का होता है । दुनिया की भागमभाग की जगह कहानियों का काल्पनिक संसार होता है। मन में असंख्य सवाल सेकेंडों में आकार लेते है और उतनी तेजी से ही कोना पकड़ लेते हैं। पहले तो लोरियां और फिर दादी-नानी से राजा-रानी की कहानियां ... बच्चें एक कहानी से दूसरी कहानी के बीच झूलते-झमकते रहते हैं । ... वैसे भी उनकी जरुरत और होती ही क्या है-  उनकी फ़रमाइश तो बस टोकरी भर कहानी की होती है।

कहानियों की यही तलाश कॉमिक्स और बाल-पत्रिकाओं की ओर ले जाती है। बचपन में हमने भी खूब कहानियां पढ़ी। जब जो कॉमिक्स या बाल-पत्रिका हाथ में आई आद्योपांत पाठ के पश्चात ही हाथ से फिसल पाती। वैसे तो कई बाल-पत्रिकाएं थी- नंदन, नन्हे सम्राट, लोटपोट, बालहंस. चंपक आदि-आदि, लेकिन इन पत्रिकाओं में सबसे खास नंदन ही था । सारी पत्रिकाओं में सिरमौर। जहां तक कॉमिक्स का मामला था, वो तो किराए पर पढ़ने को मिल जाती लेकिन पत्रिकाओं को पढ़ने के लिए खरीदना ही पड़ता।

वर्णमाला और पाठ्य-पुस्तकों के साथ पाला पड़ा ही थी नंदन की घुसपैठ शुरु हो गयी थी। ... और फिर क्या था ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ रही थी, नंदन के साथ रिश्ते भी घनिष्ठ होते चले गए। हर महीने हम नंदन का इंतजार करते। पैसे के सीमित प्रवाह के बीच कभी खरीद कर पढ़ते तो कभी इधर-उधर जहां भी नंदन महोदय विराजमान दिखते।

नंदन की कहानियों का एक अपना ही आकर्षण था ।  तेनालीराम महोदय भी अपनी चतुराई लिए हर महीने नंदन के पन्नों में अपनी बौद्धिक छटा बिखरते मिलते। एक चुनौती चित्र-मिलान कर अंतर ढ़ूढ़ने की होती। सबसे पहले अंतर ढ़ूंढ़ने के लिए हम मारा-मारी करते।... और एक सबसे खास बात जो नंदन की औरों से अलग थी... वो था- बाल समाचार। चार पन्नों में खबरों का संकलन- अखबारी कलेवर में। यह नंदन का सबसे भीतरी पन्ना होता। मैं कई बार पिन सीधी कर इन पन्नों को निकालकर उनका संग्रह करता । कई बार ऐसा लगता है कि पत्रकारिता के कोर्स में मेरे दाखिले का सूत्र नंदन के इन पन्नों से ही शुरु होता है।


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