राजेश खन्ना से मेरा परिचय दीपक के अंतिम लौ को महसूस किए जाने जैसा है, मेरे जन्म से पहले ही उनके सुपरस्टारडम का अवसान हो चुका था। टीना मुनीम के साथ उनकी फिल्म सौतन शायद पहली फिल्म है जिसे मैनें पर्दे पर देखा वो भी रीलिज होने के सालों बाद।
ये होता तो क्या होता , ऐसा होता तो कैसा होता... मौका और मूड किसी आलाप-प्रलाप का नही है ... लेकिन सच बताउं तो जब भी गाहे-बेगाहे "जब जब तेरी सूरत देखूं, प्यार सा दिल में जागे" की डिंपल कपाड़िया को देखता, राजेश खन्ना को गरियाने का मन करता ... सोलह से सत्ताईस के बीच की डिंपल को राजेश खन्ना ने हम सबों से दूर कर दिया (ऐसा ही मैने पढ़ा-सुना है)... बॉबी और सागर के बीच न जाने कितने जानलेवा जलवे उनकी पुरातन सोच की बलि चढ़ गए... अब भी जांबाज,सागर ,ऐतबार जैसी फिल्मे जब भी आंखों से गुजरती है उनके लिए गुस्सा और भी गहरा हो जाता है।
मैने उनकी कम ही फिल्में देखी और जो भी देखी उसकी वजह या तो दूरदर्शन है या फिर शर्मिला टैगोर और मुमताज। हालांकि राजेश खन्ना की दीवानगी तो नही पाली और न ही पनपी लेकिन शर्मिला टैगोर और उनकी जादुई जोड़ी से आखिर कोई बच भी कैसे सकता है। मेरी सबसे पसंदीदा अभिनेत्री शर्मिला टैगोर पर उनसे बेहतर न कोई फबा , न कोई जंचा। दाग, अमर प्रेम, आराधना का कालजयी अभिनेता हमारी यादों में हमेसा जिंदा रहेगा।
पोस्ट स्क्रिप्ट-- भावनाओं के तूफान में फैक्ट और फिक्शन का फासला फुस्स होता सा दिख रहा है। जी न्यूज पर फोनों में पुण्य प्रसूण वाजपेयी ने किन्हीं नाहटा साहब से पूछा सुना है कि सफेद गाड़ी से राजेश खन्ना साहब निकलते तो लड़कियां उनकी गाड़ी तक को चूम लिया करती। नाहटा साहब का जवाब था जी हां उनकी गाड़ी का कलर सफेद से गुलाबी हो जाता था। ... अब ऐसे में क्या कहा जाय ?