सोमवार, 25 जून 2012

बिखराव, पलायन और छठ...

बचपन में अभिकेंद्री और अपकेंद्री बल (सेंट्रीपीटल और सेंट्रीफ्यूगल फोर्स) के बारे में पढ़ा था , शायद क्लास छह में ... केंद्र की तरफ और विपरीत दिशा में गति को पारिभाषित करते ये शब्द महज भौतिकी विषय के कुछ नियम-कायदों को ही नही व्यक्त करते, हमारी जिंदगी को भी काफी कुछ डिफाइन करते हैं... अपनी-अपनी जड़ों से दूर होती जिंदगी या फिर कठोर शब्दों में कहें तो मौजूदा जड़विहिन से समय और काल में अपकेंद्री बल को ही ज्यादा प्रभावी होते हुए देखा-पाया है... विभिन्न रुपों में अपनी जमीन और संस्कृति हमसे दूर हुई है और फासला बढ़ता ही दिखा है, महसूस किया है...बिखराव, पलायन, विस्थापन के मौजूदा समय में छठ का त्योहार अभिकेंद्री बल सरीखा है, अपनी जमीन और संस्कृति की तरफ खींचती हैं, अपनों के बीच लाती है ,अपनों से जोड़ती है... और हां प्रकृति से भी... नितांत व्यक्तिगत होते समय में जबकि संयुक्त परिवार जैसी चीजें अतीत और समाजशास्त्र की किताबों तक सिमटती दिख रही है, छठ परिवार और समाज के लिए फेविकोल या फिर क्विकफिक्स से कम नही...

(02Nov2011)

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