शनिवार, 18 अगस्त 2012

इस शहर का पता क्या है

भाई साहब/बहन जी ... इस शहर का पता क्या है ?

कुछ दिनों पहले एक सवाल से सामना हुआ , जवाब सूझते न बना , दिमाग मानो जड़ हो गया... बनारस में कहां जाउं , क्या देखूं , क्या खाऊं... आखिर क्या बताया जाय, क्या छोड़ा जाय , क्या जोड़ा जाय ... आपाधापी में एक लिस्ट बनायी , तमाम काटपीट की ... भरमाते मन से लिस्ट मैसेज कर दिया लेकिन सवाल मन पर एक और गिरह गांठ गयी ... बनारस में पूरे तीन साल रहा हूं ... बीएचयू, लंका, अस्सी , गोदौलिया , मैदागीन यानि बनारस की पूरी लंबाई-चौड़ाई भर में खूब टंडेली की है ... गाहे-बेगाहे संकटमोचन के लड्डू खाए है , पहलवान का लौंगलत्ता लपेटा है, कचौड़ी गली की कड़क कचौड़ी पर जीभ फेरा हैं ... यादें अनगिन हैं... बस किसी के छेड़ने भर की देर है कि छड़छड़ाने लगे, समय , जगह और दस्तूर की परवाह किए बगैर ।... लेकिन सच बताउं तो अगर कोई पूछे कि बनारस में क्या देखूं या और कहां जाऊं तो दिमाग में खुजली होने लगती है इतनी कि बी-टेक्स और इचगार्ड का मिक्सचर भी उसके सामने नतमस्तक हो जाए। सालों पहले मेरे एक मित्र बनारस आए और दो-तीन दिनों के बनारस प्रवास के बाद प्रस्थान की वेला में अंसतुष्ट दिखे तो अपने भीतर उनके लिए गुस्से को उमड़ता-घुमड़ता पाया। आज आठ सालों बाद फिर यह सवाल सामने आया ... जवाब देने से पहले सोचा रिस्क क्यों लूं... सामने वाले के मन को टटोलना जरुरी लगा । कभी-कभी लगता है कि शहर या किसी जगह की तलाश और खुद की तलाश का फर्क मामूली सा ही है । किसी के पसंद के शहर से या शहर के पसंदीदा कोने से किसी को डिफाइन किया जा सकता है। वैसे द वर्ल्ड इज फ्लैट को इस जमाने में किसी कोने, किसी पहाड़, किसी खाई की गुंजाइश कम ही रह गयी है। अब यह सवाल काफी मौजूं हो गया है कि यदि कोई शहर जाया जाय तो कहां जाया जाय , कहां उसे ढूंढ़ा जाय ... इमारतों में , नदी में , खाने-पीने की दुकानों में , फैक्ट्रियों में , सरकारी गलियारों में या फिर सड़कों पर। पहले लोग कहते थे कि बंबई उंची इमारत है, कलकत्ता हावड़ा ब्रीज है, दिल्ली लालकिला है ... अब क्या ये शहर अब भी इसी पते-ठिकाने पर है ... लालकिले और हावड़ा ब्रीज पर लोगों को फिकरा कसते सुना है और उंची इमारतें तो अब हर गली में , चौक-चौराहे पर उगने लगी है । गंगा-यमुना-गंडक समान रुप से बीमार करने की क्षमता से लबरेज है। रोम का पिज्जा अब मुसल्लहपुर हाट के ठेले पर समोसे का पड़ोसी बना बैठा है। अंकल चिप्स की पन्नी केम्पटी फॉल में नहाते वक्त आपके पैरों से उलझ पड़ती है और महानगरों की गोद के किसी कोने में एसेल पार्क में झरने का आनंद लिया जा सकता है। ऐसे में शहर की तलाश में निकले मुसाफिर के लिए कस्टमाइज्ड बोर्ड की जरुरत आन पड़ी है कि अलां प्रकार के मुसाफिर इधर जाए और फलां प्रकार के मुसाफिर उधर जाएं।

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