मंगलवार, 21 अगस्त 2012

'यथार्थ' की फैक्ट्री से भ्रम की पैदावार

पटना-बनारस के परिचित परिवेश से बाहर निकलकर दिल्ली आया तो कई कहानियों से जूझना पड़ा। एम ए पॉलिटिकल साइंस के एक सहपाठी ने पूछा कि सुना है पटना स्टेशन के बाहर लोगों को गोली मार दी जाती है। सुनकर एक साथ मन में विपरीत चरित्र वाली कई हिलोंरें बाहर निकलने के लिए कम्पीट करने लगी ... हंसा जाय , रोया जाय या फिर गुस्सा किया जाय। कुछ दिनों बाद एक व्याख्यान के सिलसिले में नरेंद्र कोहली को सुनने को मिला। इसी तर्ज के एक वाकये को याद कर वो पश्चिम जगत के भारत से जुड़े भ्रम के बारे में बता-समझा रहे थे। उनकी पत्नी किसी सिलसिले में अमेरिका गयी हुई थी। एक अमरीकी महिला ने उनसे कहा कि सुना है भारत में औरतों को जिंदा जला दिया जाता है (उनका मतलब सती प्रथा से था) । उनकी पत्नी ने जवाब दिया- हां एक मैं ही बची थी, इसलिए भागकर अमरीका आ गयी। ऐसे वाकये हममें से कईयो ने अक्सर देखा-सुना होगा । हालांकि इसमें कोई शक नही कि कानून-व्यवस्था की हालत की तारीफ नही की जा सकती, लेकिन इसमें भी कोई शक नही की ऐसी मान्यताए सच्चाई की हद से परे हास्यापद ही है। दोस्तों के साथ अक्सर होने वाली चर्चाओं-बहसों में अक्सर इस मुद्दे पर टंटा खड़ा हो जाता। लोग-बाग जहां अक्सर बिहार को अराजकता का पर्याय मानते वहीं मेरा जोर इस बात पर होता कि बिहार भी बाकियों से कुछ अलग नही। थोड़ा ऊंच-नीच का फर्क हो सकता है , बाकी उससे ज्यादा कुछ नही ।कुछ दिनों पहले दोस्तों के साथ गैंग्स ऑफ वासेपुर देखना हुआ ... दोस्तों ने खूब तंज कसा कि देख लो अपना बिहार ... बहुत ऊछलते थे न ... और फिल्म भी कोई प्रभुदेवा की राउडी राठौर नही बल्कि धीर-वीर-गंभीर अनुराग कश्यप की है। अनुराग कश्यप यथार्थपरक सिनेमा के रचनाकार के रुप में चर्चित है... सत्य के संभवतम करीब तक जाने के लिए, अपने फिल्म से जुड़े शोध के लिए सराहे गए हैं... देश-विदेश में, अंग्रेजी-हिंदी में । दिमाग में पिछले तीन घंटों को रिवांइड मोड में डाला लेकिन बिहार को ढूंढ़ पाना मुश्किल ही लगा... गालियों की कई परतें उलटी-पलटी, गोलियों के ढ़ेर से टकराया ,लेकिन असफल साबित हुआ। वासेपुर के इस बिहार से मैं अपरिचित था। वासेपुर हिंसा के रोमांस का चरम है जिस पर जबरदस्ती बिहार की जिल्द चढ़ा दी गयी। वैसे अनुराग कश्यप वासेपुर का नाम गालीपुर या गोलीपुर रख देते तो बेहतर होता । एकबारगी अंधों के झुंड और हाथी की कहानी याद आ गयी। जिसने जो भी महसूस किया हाथी को वैसा ही डिफाइन कर दिया। मेरे कहने का आशय यह नही कि इन्हीं अंधों में से एक अनुराग कश्यप है, लेकिन उन्होंने या तो बाकियों को अंधा समझ लिया है या फिर उन्हें अंधा बनाने की ठान ली है।

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