सोमवार, 3 सितंबर 2012

आखिर इन ठाकरों की ठकुरसुहाती क्यूं

मुझे पता नही कि राज ठाकरे और उनके भाई बांधव माधव श्रीहरि अणे के नाम से परिचित है या नही और इस बात की गुंजाइश कम ही है कि इन ठाकरे महोदय को पता हो कि बिहार की सत्ता का पता क्या है ? सच कहूं तो मुझे उनके इतिहास-भूगोल के ज्ञान पर संदेह है और जिसकी पूरी पूरी वाजिब वजह भी है। राज ठाकरे को शायद ही मालूम हो कि बिहार की सत्ता का पता, 1 अणे मार्ग , यवतमाल के माधव अणे के नाम पर है जो स्वतंत्र भारत में बिहार के दूसरे राज्यपाल थे। खैर उनसे इतनी समझदारी की उम्मीद नासमझ ही कर सकते है । राजठाकरे को यह भी याद दिलाना होगा कि बिहारियों ने किसी एक्सक्लूसिविटि, किसी अलगाववाद की भावना को परे रखते हुए आचार्य कृपलानी, अच्युत पटवर्धन, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडीज , शरद यादव को अपना नुमाइंदा चुन कर लोकसभा भेजा। पूना में जन्म लेने वाले मधु लिमये बांका से , सिंध के हैदराबाद में जन्मे और पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने वाले जे बी कृपलानी सीतामढ़ी से ,मुंबई में जन्मे मीनू मसानी रांची से लोकसभा के लिए चुन कर भेजे गए। मुझे नही पता राज ठाकरे को हिंदी आती है या नही लेकिन बिहार के छठे दर्जे की हिंदी की टेक्स्ट बुक पलटे तो झांसी की रानी को तलवार और घोड़े के साथ युद्ध की मुद्रा में लड़ते हुए वहां पाएंगे। मराठा मर्दानी झांसी की रानी , सुभद्रा कुमारी चौहान के शब्दों के जरिए आज भी बिहार के लाखों बच्चों के जेहन में है। खैर राज ठाकरे पढ़ नही पाएंगे , उनके चश्मे पर गर्द जो जमी है।
 
राज ठाकरे को यह भी शायद ही पता हो मानभूम के मसले पर जब बिहार और बंगाल में ठनी थी तो ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सन 1956 में विलय का एलान किया था और विलय के प्रस्ताव को तब के बिहार की विधानसभा ने भारी मतों से पास कर दिया। और इसके अनिश्चित परिणामों की आशंका से बिहार विधानमंडल को अवगत कराने वाले कोई और नही दक्षिण भारत के धारवाड़ से आने वाले तत्कालीन राज्यपाल आर आर दिवाकर थे। खैर तबके पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय ने विलय का प्रस्ताव वापस ले लिया था। साल 1993 में एक फिल्म आयी थी तिरंगा। तिरंगा का किरदार शिवाजी राव वागले जब कहता है - नाम शिवाजी राव वागले , मराठा हूं , मराठा मरता है या मारता है – याद है कि दलसिंहसराय के सिनेमाहॉल में मौजूद हर एक ने जमकर तालियां बजायी थी। खैर राज ठाकरे को शायद ही पता हो कि दलसिंहसराय भारत के नक्शे पर कहां है। उनके लिए तो भारत के नक्शे का दायरा मुंबई और महाराष्ट्र की सीमाओं पर ही दम तोड़ देता है। मुझे याद है नाना पाटेकर ने जब ये संवाद कहा ,न जाने शरीर के किस हिस्से से -आंत से , अग्नाशय से या फिर यदि कोई आत्मा होती हो तो वहां से एक सरसराहट सी पैदा हुई और शरीर झनझना सा गया । लेकिन राज ठाकरे तो अब इस डायलॉग का डायमेंशन ही बदलने में लगे है और अब एकबारगी कहने को मन करता है, आखिर मराठा मरता-मारता क्यूं है , और उसके पास इस हुड़दंग के अलावा और कोई काम नही है क्या ? खैर मेरा मन इस बात को मानने से साफ इंकार करता है कि महाराष्ट्र केवल राज ठाकरों से भरा पड़ा है , आशा भोंसले के फैसले ने इसे साबित भी किया है। लेकिन राज ठाकरे के हुड़दंगपन पर चुप्पी क्यों , क्यू महाराष्ट्र की सरकार वाजिब कदम उठाने से इंकार कर रही है और क्यूं वहां का शासनतंत्र खामोशी से इसे देख सुन रहा है ... और आखिर में ये सवाल कि इन ठाकरों की ठकुरसुहाती क्यूं ?

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