पहले ही कहता
चलूं कि ऐसा नही है कि बाकी जगहों पर बेटें-बेटियां-बीवियां, भाई-भतीजे-भौजाइंआ
नही है, लेकिन यहां मामला उन सार्वजनिक पदों का है, जिस पर आसीन होने की गलियों और
रास्तों का लोकतांत्रिक होने का दावा किया जाता रहा है, और लोकतांत्रिक होना जरुरी
भी है, ऐसे में सवाल उठने लाजमी है और जरुरी भी है। हालांकि राजनीतिक दलों का
जिक्र संविधान में नही है और न ही इस संबंध में किसी बनावट-बुनावट को प्रीस्क्राइब
किया गया है, लेकिन उद्देशिका, संविधान की भावना-भाव-भंगिमा और अब मूल ढ़ांचे के
तहत उसके लोकंतांत्रिक होने की उम्मीद तो की ही जा सकती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था
में विशाल आकार और जनसंख्या वाले देशों में राजनीतिक दलों के कंधों पर ही लोकतंत्र
को प्रतिष्ठित करने की जिम्मेदारी आन पड़ती है, ऐसे में स्वाभाविक है कि राजनीतिक
दलों की धमनियों में लोकतंत्र के प्रवाहित होने की उम्मीद लोग किया करते हैं, पाल
बैठते हैं। हालांकि ऐसा नही है कि मंत्रिमंडल विस्तार कोई पहली बार हुआ है, और
सियासी रसूख वाले खानदानी परिवारों की इसमें बड़ी दखल कोई पहली-पहली दफा है,
लेकिन इस को यह कर चर्चा से परे नही किया जा सकता कि ये तो चलता ही है या इसमें
नया क्या है। वैसे इंसान उम्मीद ही छोड़ दे , सवाल न करे तो फिर तो फिर आखिर क्या
बचा रह जाएगा ? पाश की एक महत्वपूर्ण कविता भी है- सबसे खतरनाक है
सपनों का मर जाना।
कुछ दिनों पहले
जेएनयू की लाइब्रेरी की दीवार पर उदय प्रकाश की एक कविता चस्पां दिखी थी, जिसका एक
हिस्सा था-
कुछ नही सोचने और
कुछ नही
बोलने पर
आदमी
मर जाता है
खैर ... यूपीए-2
मंत्रिमंडल की इस तीसरे फेरबदल या विस्तार में 7 काबीना स्तर और 11 लोगों को राज्यमंत्री
के रुप में शपथ दिलायी गयी। ऐसा में सोचा कि एक बार नजर डालूं कि आखिर बहू-बेटों-बेटियों
की कितनी तादाद है इस बार।
मानव संसाधन
मंत्रालय का पदभार संभालने वाले और आंध्र प्रदेश के काकीनाडा से सांसद एमएम पल्लम
राजू के पिता एम एस संजीवी राव 1982-84 तक इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में केंद्रीय
मंत्री रह चुके हैं और एम एम पल्लम राजू नौंवी लोकसभा में सबसे युवा सदस्य थे। वैसे
राजनीति में अक्सर युवाओं को भागीदारी देने की बात की जाती रही है, लेकिन राजनीति
में युवाओं की खेप का गलियारा अक्सर राजनेताओं के आंगन से ही निकलता मालूम होता
है। पल्लम राजू अकेले नही है जिनके नाम राजनीति में युवापन के प्रतीक है, दिल्ली
विधानसभा के अब तक के सबसे युवा विधानसभा अध्यक्ष अजय माकन भी सियासी रसूख रखने
वाले खानदानों में से है। उनके चाचा और दक्षिणी दिल्ली से पूर्व सांसद ललित माकन
का भी खासा जलवा था। बताते चले कि ललित माकन पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के दामाद
थे। ललित माकन की हत्या के बाद अजय माकन अपनी खानदानी जिम्मेवारी निभा रहे है।
ललित माकन के दामाद अशोक तंवर अभी सिरसा से लोकसभा के सांसद है ।
नई संस्कृति
मंत्री की जड़े राजघरानों से होकर गुजरती है। जोधपुर राजघराने में जन्मी चंद्रेश
कुमारी कांगड़ा के कटोच राजघराने की बहू है। हिमाचल में वीरभद्र सिंह के मुख्यमंत्रित्व
काल में मंत्री भी रही और अब कहा जाता है कि हिमाचल न लौटने के एवज में उन्हें
कैबिनेट में जगह मिली है। विधि और न्याय
के कैबिनेट मंत्री का पदभार संभालने वाले अश्विनी कुमार भी पंजाब के मशहूर
राजनीतिक परिवार से है । उनके पिता प्रबोध चंद्र पंजाब विधानसभा में अध्यक्ष के पद
पर आसीन रहे हैं। सूचना एवं प्रसारणमंत्री का स्वतंत्र पदभार संभालने वाले मनीष
तिवारी के नाना सरदार तीरथ सिंह जहां पंजाब (पेप्सू) के कांग्रेस सरकार में जहां
मंत्री रह चुके हैं वही पिता वी एन तिवारी भी राज्यसभा में मनोनीत सांसद थे।
बिहार के कटिहार
संसदीय क्षेत्र से पूर्व लोकसभा सांसद और अब महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद कृषि
राज्य मंत्री तारिक अनवर भी सियासी रसूख वाले परिवार से आते हैं। उनके दादा
बैरिस्टर शाह मोहम्मद जुबैर तीस के दशक में बिहार-उड़ीसा प्रदेश कांग्रेस समिति के
अध्यक्ष थे और पिता शाह मुश्ताक अहमद बिहार विधानसभा के सदस्य। रेलवे
राज्यमंत्री के रुप में नियुक्त और रायलसीमा इलाके के कर्नुल सीट से सांसद कोटला
जय सूर्यप्रकाश रेड्डी के परिवार का भी राजनीतिक इतिहास रहा है। उनके पिता कोटला
विजयभास्कर रेड्डी दो बार आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। सूर्यप्रकाश
रेड्डी जब पहली बार लोकसभा के लिए 1994 में चुने गए थे तो उनके पिता विजयभास्कर
रेड्डी मुख्यमंत्री पद पर आसीन थे।
आदिवासी मामलों
के मंत्रालय की राज्यमंत्री बनी रानी नाराह के पति भरत नाराह वर्तमान तरुण गोगोई
सरकार में मंत्री है। असम की तरफ से क्रिकेट खेल चुकी रानी नाराह बीसीसीआई में
विलय तक वुमेंस क्रिकेट असोशिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद की शोभा भी बढ़ा चुकी
है। वैसे रक्षा राज्य मंत्री के पद पर नियुक्त लालचंद कटारिया की भी खेलों से
जुड़ी पृष्ठभूमि रही है और वो कबड्डी के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रह चुके हैं। लालचंद
कटारिया भी विधायक रह चुके अपने पिता रामप्रताप कटारिया की राजनीतिक विरासत संभाल
रहे हैं। स्वास्थ्य एवं
परिवार कल्याण राज्यमंत्री अबु हाशिम खां चौधरी जहां कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे
ए बी ए गनीखां चौधरी के भाई हैं वहीं दीपा दाशमुंशी पूर्व केंद्रीय मंत्री
प्रियरंजन दासमुंशी की पत्नी है। प्रियरंजन दासमुंशी अभी कोमा में है, ऐसे में
उनकी विरासत अब उनकी पत्नी संभाल रही है। वैसे कुछ अन्य
नामों पर गौर करें तो केंद्रीय मंत्रिमंडल में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी
राज्यमंत्री के रुप में नियुक्त श्रीकाकुलम से सांसद किल्ली कृपरानी की अनेक
उपलब्धियों से से एक उनकी किताब `हंड्रेड ईयर सागा ऑफ नेहरु फैमिली` भी है। वो तेलगूदेशम पार्टी के हैवीवेट येर्रन नायडू को हरा कर लोकसभा के लिए
चुनी गयी है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के रहमान खान कभी लोकसभा से नही चुने गए
और बीते दो दशकों से राज्यसभा के सदस्य है। वो राज्यसभा के उप-सभापति भी रह चुके
हैं।
अन्त में ... साल
1981 में प्रकाश मेहरा के निर्देशन में और अमिताभ-जीनत अभिनीत एक फिल्म आयी थी,
जिसका एक मशहूर गाना था– मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है ...। आज के
राजनीतिक परिदृश्य यह लाइन फिट बैठती है... आखिर यह बेटे-बेटियों, भाई-भतीजों का ही
आंगन तो है।
पोस्ट-स्क्रिप्ट---
नए श्रम और रोजगार राज्यमंत्री और केरल के मावेलीकारा से चुने गए के. सुरेश के
निर्वाचन को केरल उच्च न्यायालय ने स्कूल-सर्टिफिकेट में उनके ईसाई धर्मालंबी (उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था) दर्ज होने के बावजूद दलितों के लिए
आरक्षित सीट पर चुनाव की वजह से खारिज कर दिया था, लेकिन एक साल बाद सर्वौच्च न्यायालय
ने उच्च न्यायालय के आदेश को इस आधार पर खारिज कर दिया कि वो पुनर्धर्मातंरण के
बाद ईसाई नही रह गए थे।
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