तंत्रिका तंत्र के
करोड़ों न्यूरॉनों के गुच्छों में
न जाने कौन सा गुच्छा
सुस्त हो गया है
या फिर सुप्त हो गया है
कि हंसी और हताशा
दोनों ही हालातों को बयां करने में
चेहरा असमर्थ होता है
शरीर की भाव-भंगिमा
चेहरे का चाल-चलन
और मन के बीच का स्वाभाविक विद्युत-प्रवाह
समय के चक्रव्यूह में
अभिमन्यु बन चुका है
द्रोणाचार्य विपक्षी खेमे में है
अर्जुन को आवाज लगाई जा रही है।
करोड़ों न्यूरॉनों के गुच्छों में
न जाने कौन सा गुच्छा
सुस्त हो गया है
या फिर सुप्त हो गया है
कि हंसी और हताशा
दोनों ही हालातों को बयां करने में
चेहरा असमर्थ होता है
शरीर की भाव-भंगिमा
चेहरे का चाल-चलन
और मन के बीच का स्वाभाविक विद्युत-प्रवाह
समय के चक्रव्यूह में
अभिमन्यु बन चुका है
द्रोणाचार्य विपक्षी खेमे में है
अर्जुन को आवाज लगाई जा रही है।
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