रविवार, 24 जून 2012

बुजुर्गियत की मौत...युवा होने और बनने के बीच...

डीएनए अखबार ने आज से संपादकीय पेज की समाप्ति की घोषणा कर दी। काफी अजीब भी है और दुखद भी। मुझे याद है अपने स्कूल कालेज के दिनों में अक्सर लोग-बाग कहा करते बेटा बीच का पेज यानि संपादकीय जरुर पढ़ना। संपादकीय पेज न केवल अखबार की आत्मा होती बल्कि अखबार का दृष्टिकोण और किसी मुद्दे पर उसकी खरी खरी होती , साथ ही पाठकों की भी प्रतिक्रिया का भी मंच होता।संपादकीय के अंत की ये शुरुआत युवा होने और बनने के दंभ और दौर के बीच बुजुर्गियत की मौत सरीखा है ।डीएनए इसे प्रोग्रेस और इवोल्व होने के प्रोसेस का हिस्सा मानती है और साथ ही अपने इस फैसले से पाठकों की रजामंदी पर भी कांफीडेंट है। मुझे नही पता आखिर किस सर्वे का रिजल्ट है यह और न ही अपने पहले पन्ने की सबसे बड़ी खबर पर उसने इसका आभास दिया है। लेकिन एक सवाल जो मौजूं है वो ये कि पाठकों की इस अखबार से आपत्ति और विरोध क्या केवल एडिटोरियल तक ही सीमित था ? और सबसे बड़ा सवाल ये है कि मीडिया अब क्या केवल मीडियम के रुप में ही सीमित होकर रह जाएगी... 

(01Feb2011)

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