सोमवार, 25 जून 2012

उत्तरप्रदेश के चार राज्य

बचपन से ही सामान्य ज्ञान की किताबों को घोंटने में लगा रहा। कुछ पल्ले पड़ा और कुछ ने हमेशा ही अपना दामन हमसे झटक लिया। आविष्कार-आविष्कारक, स्मारक-निर्माता की लंबी सूची तोतारटंत संस्कृति के पदचिह्नों पर कंठस्थ करने में कोई कोर-कसर बाकी नही रखी और किसी भी दूसरे कस्बाई छात्र की तरह परंपरा का बखूबी निर्वहन करता रहा... लेकिन इन आविष्कारों ,निर्माणों के पीछे की कथा-कहानी का पाठ न के बराबर ही रहा,किया। कहने में कोई गुरेज नही कि अध्ययन सतही था और सतह को कुरेद कर- खुंरच कर न देखने की पूर्ववर्ती छात्रों-विद्यार्थियों की परंपरा को मासूमियत और पवित्रता से निबाहा। सफलता और सफल लोगों की लंबी सूची को रटने में कोई कोर-कसर बाकी नही रखी , आखिर हमें भी सफल जो होना था। खैर पर्दे के पीछे और सतह के नीचे की कथा-कहानियां समय के प्रवाह में अक्सर पीछे छूट जाती है, और सफल लोगों के सुभीते के लिहाज से मुड़ती-तुड़ती , बनती-बिगड़ती रहती है। सफलता के श्रीचरणों में सच्चाई यानि कहानी अपने संपूर्ण रुप में हमेशा ही ऑक्सीजन की कमी से जूझती रही है ,और इक्का-दुक्का ही समय,परंपरा,संघर्ष,परिस्थिति और इतिहास के दुर्गम-दुर्दांत पथ-परिस्थिति में ठठ पाती हैं। उत्तरप्रदेश के गरमाते राजनीतिक माहौल में मायावती के चार राज्यों के निर्माण के फैसले ने सालों से दिमाग में चल रही इस कशमकश को फिर से पृष्ठभूमि से सतह पर लाने का काम किया कि निर्माण, सफलता, नायकों-खलनायकों की पूरी कहानी आखिर इतिहास की किताबों में दर्ज क्यों नही हो पाती, आखिर इतिहास की किताबें ग्रहण का शिकार क्यूं हो जाती है। ये सोचने वाली बात है कि भविष्य में जब ये राज्य अस्तित्व में आएंगें तो कितने लोगों की याद्दाशत में सत्ता का स्वार्थ और वर्तमान परिस्थितियां याद आ पाएंगी। बात केवल मायावती और इन राज्यों के निर्माण की नही है, सफलता-असफलता के हर गली-मोहल्ले में कहानियों के कब्र मिलेंगें, उन कहानियों के जिनकी बलि इतिहास ने सफलता की ठकुरसुहाती में ले ली। समय के साथ स्मृति से ओझल हो चुकी इन कहानियों की कब्रगाहों पर डली मिट्टी न केवल हटाने की जरुरत हैं, बल्कि नायकों-खलनायकों, सफल-असफल लोगों के लिटमस टेस्ट किए जाने की जरुरत भी है। देवी-देवताओं, सुर-असुरों, परंपराओं-मान्यताओं को तर्क की कसौटी पर कसे जाने की जरुरत है, पुनर्पाठ पुनर्मूल्कांयन की जरुरत है। तकनीक और तर्क के इस युग में राम-रावण से लेकर वर्तमान जमाने के नायकों-खलनायकों को फिर से पढ़ा जाना चाहिए, और हां आंख मूंदकर श्रीगान से बचना चाहिए, परहेज करना चाहिए।.... 

(19Nov2011)

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