सोमवार, 25 जून 2012

सजीले कुत्तों का निराला मामला

अगर सजीले कुत्तों को किसी शैक्षणिक संस्थान के स्टेटस में चार चांद लगाने की जिम्मेदारी दे दी जाए तो फिर कैसा लगेगा ???... हतप्रभ और हंसी दोनों से ही जूझने की नौबत आ जाएगी। इंटरनैशनल मूट कोर्ट कंपीटिशन के चक्कर में अमिटी के नोएडा कैंपस गया तो अमिटी के कई सुरक्षा-गार्डों को सजीले-भड़कीले कुत्तों के साथ चहलकदमी करते या फिर बिल्डिंगों के बाहर बुत बना पाया। जिज्ञासा हुई तो चलते-चलते एक गार्ड से पूछ-ताछ कर ही डाली, गार्ड का गर्वीला अंदाज नोटिस किए जाने लायक था। पता चला नोएडा कैंपस में ऐसे सजीले कुत्ते दस की संख्या में है औऱ मनेसर कैंपस में इससे पांच गुना यानि पचास। गार्ड ने अपनी खाकी वर्दी का जिक्र भी खास तौर पर किया , साथ ही ये बताने से भी नही चूका कि मालिक को खाकी वर्दी के लिए प्रशासन से कितनी लंबी जंग लड़नी पड़ी। इन सजीले कुत्तों ने एकबारगी ये सोचने को मजबूर कर दिया कि एक शैक्षणिक संस्थान आखिर किन वजहों से पहचाना जाता है, आखिर उसकी धाक की वजह क्या होती है... कई पत्र-पत्रिकाओं के सर्वे पर सालों से नजर डाल रहा हूं... रिसर्च, फैकल्टी, परीक्षा पद्धति, आधारभूत ढ़ांचा तमाम कारक गिनाए जाते है, औसत अंक निकाले जाते है और फिर इन मानकों के आधार पर सूची तैयार होती है। वैसे अक्सर संस्थान अपने मन-माफिक सर्वे भी निकालते हैं, या फिर किसी सर्वे को तोड़-मरोड़ कर सूची में अपने अव्वल होने का स्वांग भी भरते है। खासकर एक संस्थान तो अक्सर पत्र-पत्रिकाओं में चमकीले पन्नों और होर्डिगों में विदेश यात्रा और शीशमहलनुमा संस्थान की इमारत के जरिए विद्यार्थियों को लुभाने के लिए मशहूर है... और भी संस्थान है इसके नक्शेकदम पर और ये कोई अकेला नही। ... इस `समथिंग डिफरेंट` के चक्कर ने सालों पहले की याद ताजा करा दी। उस समय हमारे यहां बच्चे यहां तो जमीन पर चटाई बिछाकर गुरु-ज्ञान लेते थे या फिर आड़ी-तिरछी बेंचनुमा सी आकृति पर बैठकर। चटाई-स्कूल के बच्चों के लिए `हिन्दी माध्यम से कॉन्वेंट एजुकेटेड करने वाले टूटपुजिंया स्कूल` के बच्चों की एलास्टिक वाली टाई और टीन की बैच ईर्ष्या की वजह होती थी। फिर हमारे यहां एक जीप वाला स्कूल अस्तित्व में आया और ईर्ष्या की वजह बना। बच्चों से लदालद-लबालब भरी खटारा जीप जब अपनी ही जैसी सड़क पर धूल-धक्कड़ उड़ाती निकलती तो लोगों को गुलाबजल के फुहारों सा अहसास होता। चटाई-स्कूल सहित दूसरे स्कूलों के बच्चे जीप-दर्शन और फिर धूल-धक्कड़ का आनंद लेने से खुद को रोक नही पाते। फिर तो बड़ी बस, कंप्यूटर और केरल से खासतौर पर अंग्रेजी पढ़ाने के लिए आयातित शिक्षक इस कड़ी में जुड़ते गए।... लेकिन इन सजीले कुत्तों का मामला निराला है, इसमें कोई संदेह नही। 

(19Nov2011)

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