सोमवार, 10 सितंबर 2012

इन अंधों को आईना बांटे कोई !!!

केबीसी यानि कौन बनेगा करोड़पति इन दिनों लोगों के दिमाग पर तारी है। सोचा एक सवाल मैं भी पूछता चलूं... आखिर राज ठाकरे, हंगरी के सजेगेदी और गौरनंदन यानि गोरा आपस में किस कड़ी से जुड़े है ? …या कहें तो इन तीनों का आपस में क्या संबंध है ? जवाब मालूम है तो भी न मालूम है तब भी आगे की चंद लाइनें पढ़ें।...

पता नही राज ठाकरे ने कभी हंगरी की यात्रा की है या नही, लेकिन इतना तो तय है कि हंगरी के नाम से ठाकरे साहब परिचित जरुर होंगें। मौका माकूल है और मेरी माने तो बिहार सरकार इस यात्रा का खर्च सरकारी खजाने से वहन करे... और शायद ही बिहारियों को इससे कोई आपत्ति हो , कम से कम मुझे तो नही है। दरअसल ठीक उसी वक्त जबकि ठाकरे-दिग्गी प्रकरण चर्चा में हैं, हंगरी का एक युवा नेता 30 साल के सी. सजेगेदी चर्चा में हैं। दक्षिणपंथी जोबिक पार्टी का यह उभरता सितारा भी राज ठाकरे महोदय की तर्ज पर ही जुबानी उल्टी करने में निपुण है , लेकिन इतिहास ने उनके वर्तमान की मिट्टी पलीद कर दी है ठीक वैसे ही जैसे प्रबोधनकार ठाकरे की किताब ने बिहारियों के प्रति ठाकरे कुनबे की नफरत भरी राजनीति को हास्यास्पद मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है । दरअसल सजेगेदी साहब यहूदियों को लेकर उलटबांसी के कला-कौशल में सिद्धहस्त है ... वैसे ही जैसे ठाकरे बंधु-बांधव अपनी उलटबांसियों के लिए एक्सपर्ट हैं। कुछ दिनों पहले आयी एक खबर ने सजेगेदी साहब की राजनीतिक जमीन खिसका कर रख दी हैं, या कहें तो उनकी हालत त्रिशंकु माफिक हो गयी है ...अपने फंदे में वो खुद ही उलझ कर रह गए हैं। पता चला है कि सजेगेदी साहब की शिराओं में उन्ही यहुदियों का रक्त प्रवाहित होता है जिनकी आलोचना कर उन्होंने नफरत भरी अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की है, नागफनी के पौधों को बोया-सींचा है । अफवाह काफी पहले से थी और अब एक ऑडियो टेप ने उनके दोरंगेपन की कलई खोलकर रख दी है। इस ऑडियो रिकॉर्डिंग में सजेगेदी एक व्यक्ति को अपने यहूदी मूल को होने के साक्ष्य छुपाने के लिए पैसे का प्रलोभन देते हुए सुनाई दे रहे हैं। मामला यह है कि उनकी दादी हिटलर की क्रूर कारिस्तानियों में से एक ऑस्वित्ज कैंप का दंश झेलने वाली यहूदी महिला थी। अब सजेगेदी न केवल इसे मान लेने पर मजबूर हुए हैं , बल्कि पत्रकारों के सवालों से भागे-भागे फिर रहे हैं। ऐसे में राज ठाकरे जब हंगरी जाएंगे तो सजेगेदी और वो दोनों ही एक दूसरे को कंधा दे पाएंगें और साथ दोनों को ही सुबुद्धि आ जाए। खैर हंगरी में मराठी नही बोली जाती और हंगरी कोई मुंबई तो है नही कि लोगों से जबरिया मराठी बुलवायी जा सके। ऐसे में बिहार सरकार उनके दुभाषिए का इंतजाम सरकारी खर्चे पर कर दे तो मेरा आग्रह है कोई आपत्ति न करे... प्लीज। खैर मैं सोच रहा हूं कि क्यूं न उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर की गोरा गिफ्ट कर दी जाय । किताब वैसे तो कोई ज्यादा मंहगी नही है ... पेपरबैक संस्करण तो और भी सस्ते में आ जाएगा। हममें से कई गौरमोहन से परिचित होगें , वही जिसे सब गोरा कहकर बुलाते है... कट्टर और रुढ़िवादी हिंदू। हिंदू समाज के लिए उसके तयशुदा मानदंडो में कमी की वजह से जहां उसके लिए अपनी मां कृष्णमयी के हाथों का भोजन करने में कष्ट होता था, बाद में इस बात का उद्घाटन होने पर कि दरअसल वो आयरिश माता-पिता की संतान है , उसके बनाए हुए किले खुद-ब-खुद भड़भड़ाकर गिर पड़े । ... और उपन्यास के अंत में वो कृष्णमयी के पांवों में गिर पड़ता है। खैर बात अब ठाकरे बंधु-बांधवों की ...चर्चा-ए-आम है कि ठाकरे साहब के पूर्वज कभी बिहारी हुआ करते `थे`। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के मुताबिक बकौल राज ठाकरे के पितामह प्रबोधनकार ठाकरे उनका कुनबा मगध यानि वर्तमान बिहार से ताल्लुक रखता है। बीजेपी-शिवसेना राज के दौरान छपी इस किताब के मुताबिक मगध से मध्यप्रदेश के भोपाल और फिर चितौड़गढ़ के रास्ते ठाकरेगण पुणे के माधवगढ़ पहुंचे। ठाकरे परिवार और उनकी तमाम छोटी-बड़ी शाखाएं जिन बिहारियों को आए दिन गरियाकर अपने कीचड़ पुते-भरे दिमाग का परिचय देती है , इन परिस्थितियों में क्या सोच रही होगी ये तो खैर भगवान ही जानें। लेकिन इतनी तो उम्मीद की ही जा सकती है कि सजेगेदी साहब का हश्र शायद कुछ सुबुद्धि का उनमें संचार करें। देसी-विदेशी दोनों ही उदाहरण हैं उनके सामने।

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