रविवार, 16 दिसंबर 2012

गुमशुदा लोगों की लंबी होती लिस्ट

जब आप सुबह उठते हैं
ब्रुश-पेस्ट से लेकर साबुन मलते हैं
जबड़े तले कुछ चबा कर

ऑटो, मेट्रो या फिर अपनी-अपनी गाड़ियों में
अपने ऑफिसों का रुख करते हैं
रेडलाइट की रुकावट पर खीजते हैं
बढ़ी हुई आबादी , आगे वाले की बेवकूफी
और पीछे से आती पों पों पर सुलगते हैं
ऑफिस के कंप्यूटर पर रह रह कर आंखे तरेरते हैं
दर्जनों चाय और कॉफी की प्यालियों में
भीतर के कसैलेपन को घोलने की असफल कोशिश करते हैं
फिर शरीर के तमाम कलपुर्जों को समेटकर
घर वापस आते हैं
दोस्तों के साथ दर्द बांटते हैं
या फिर उनका दर्द बढ़ाते हैं
टीवी चैनलों पर सास-बहू के झगड़े
और जेठालाल की बेवकूफियों में खुशी तलाशते हैं
और फिर रात-सुबह-शाम के उसी चक्र में गुम हो जाते हैं
यदि यह नॉर्मल होना है
तो फिर एबनॉर्मेलिटी क्या है ?
खैर गुमशुदा लोगों की फेहरिस्त नॉर्मल इंसानों से भरी-पूरी दिखती है।

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