क्या किया जाए
क्या कहा जाए
क्या सुना जाए
क्या देखा जाए
कब कान खोली जाए
क्या कहा जाए
क्या सुना जाए
क्या देखा जाए
कब कान खोली जाए
कब आंखे बंद की जाए
कब खामोश रहा जाए
कब कहां क्या बरता जाए
अपनी सुविधा के तमाम समीकरणों पर
तोल-मोल कर , नाप-जोख कर
हम अपनी भाव-भंगिमा
अपने हाव-भाव,अपने कार्यकलाप तय करते हैं
और हम सभ्य होने का दंभ भरते हैं।
हमारा रोजनामचा
हमारे सभ्य होने के पीछे के
जोड़-घटाव, गुणा-भाग की गवाही देता है
हम सभ्य है
और सभ्यता की ओट पाए इस गणित के मरीज भी।
कब खामोश रहा जाए
कब कहां क्या बरता जाए
अपनी सुविधा के तमाम समीकरणों पर
तोल-मोल कर , नाप-जोख कर
हम अपनी भाव-भंगिमा
अपने हाव-भाव,अपने कार्यकलाप तय करते हैं
और हम सभ्य होने का दंभ भरते हैं।
हमारा रोजनामचा
हमारे सभ्य होने के पीछे के
जोड़-घटाव, गुणा-भाग की गवाही देता है
हम सभ्य है
और सभ्यता की ओट पाए इस गणित के मरीज भी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें