शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

फिर वही रात-दिन ...

कल सुबह नही बदलेगी
बस मुद्दे बदल जाएंगे
फिर वही रात आएगी
हम नर और मादा हो जाएंगे
अगड़े-पिछड़े हो जाएंगे
शहर-गांव बन जाएंगें
ऑफिस-खेतों में गुम जाएंगें
अंग्रेजी-हिंदी हो जाएंगें
थोड़ी फुरसत में
सरकार और बाकियों को गरियाएगें
चाय-चुक्कड़ में डूब जाएंगें।

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