शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

किसिम-किसिम के `वामपंथी` ...

#कुछ वामपंथियों का वामपंथ पर सर्वाधिकार सुनिश्चित होता है।

#कुछ वामपंथी तो इतने शुद्धतावादी हैं कि दायें देखते भी नही ... मानो दाहिने देखा नही कि उनका वामपंथ प्रदूषित।

#कुछ वामपंथी तो अपना पूरा जीवन ही छद्म वामपंथ को उजागर करने में गुजार देते हैं। ढ़ोगी वामपंथियों की तलाश और उनको खोदने-खुरचने में वो अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। अनवरत इस पड़ताल में जुटे रहते हैं कि कौन खालिस वामपंथी है और कौन मिलावटी। कह सकते हैं कि ऑर्गेनिक बनाम केमिकल के झोलझाल की झारु-बहारु में जुटे होते हैं।

#कुछ तो एकदम ही क्रांतिकारी टाइप है, रक्त-उबालू गीत रचते है, दोस्तों के साथ देशी-विदेशी ब्रांडेड दारु गटकते है, लेकिन उनके लिए कोका-काला माने बोतलबंद सर्वहारा रक्त, पीते ही धमनियों में प्रवाहित वामपंथ के दूषित हो जाने का डर। सिगरेट के उठते-बनते हुए छल्लों के बीच इनकी आभामयी तस्वीर की जद में आकर कोई भी अधम संघर्ष के लिए व्याकुल हो जाए।

#कुछ एडजस्टेवल होते हैं- बाल्यावस्था में बालपंथी, किशोरावस्था में वामपंथी और अधेड़ावस्था में दक्षिणपंथी और सब-का-सब रुप खालिस। कालक्रम के अनुसार प्रोग्रामिंग तय होती है।

#कुछ वामपंथी स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना माफिक होते है, राजमार्गों पर महानगरों के बीच संचरित रहते हुए वामपंथ के लिए जीवन समर्पित कर देते हैं।

#कुछ वामपंथी पारस पत्थर समान जादुई शक्ति जड़ित होते हैं, जिसको भी छू दे वामपंथी बना दें। इंसान किसी भी पंथ से हो अचानक वामपंथी दृष्टिगोचर होने लगता है।

#कुछ वामपंथी पत्र-पत्रिकाओं को संपादित करते हैं (अपने रहने-खाने-पीने का जुगाड़ कर लेते हैं) समाज-देश-विदेश पर लोगों को जमकर जागरुक करते है, लेकिन लेखकों को रुपए-पैसे से दूर रखते है ताकि उनमें पूंजीवादी भावनाएं न अंकुरित हो जाए।

#कुछ वामपंथ खालिस अंग्रेजी मार्का है, अंग्रेजी में ही खाते-बतियाते जीवन गुजारते हैं लेकिन हिंदी उनके लिहाज से साम्राज्यवादी है।

#कुछ वामपंथियों का संघर्ष घर के चौखटे से बाहर शुरु होता है और फिर वापस चौखटे की चौहद्दी पर आकर सुस्ताने लगता है। हालांकि संघर्ष की गर्दन पर मालिकाना रस्सी भी बांध देते हैं कि घर से रिफ्रेश होने के बाद वामपंथी संघर्ष फिर वहीं पर जुगाली करता हुआ मिल जाए... और फिर उसको अगले संघर्ष के लिए हांक लें।

#कुछ वामपंथी तो रेडियो-टीवी के लिए कस्टमाइज्ड होते हैं। अंग-संचालन, चेहरे-मोहरे से लेकर हाव-भाव तक टीवी गेस्ट के लिए आदर्श मानदंडों के मुताबिक प्रोग्राम्ड होता है।

#कुछ अपने जाति, लिंग, धर्म, जन्मस्थान के श्रेष्ठता की सच्चाई को छोड़कर पूरी तरह और तरीके से वामपंथी होते हैं। एक अंग्रेजी कहावत का हिंदी अनुवाद भी है कि- अपवाद होना यानि नियम का सत्य होना।

#कुछ छात्र पार्टटाइम वामपंथी होते हैं खासकर तब जब वो वामपंथ पर अनुसंधानरत होते हैं और तब तो उग्र वामपंथी हो जाते हैं जब उनके गाइड भी वामपंथी हों।

#कुछ लोग अपनी रोजगार-स्थली को छोड़कर बाकी जगहों पर वामपंथी होते है, आखिर वामपंथ के विश्राम की भी तो कोई जगह होनी चाहिए। जब अपने संस्थानों में छंटनी होती है तो उस समय मारुति के मुद्दे पर मजदूरों के लिए संघर्ष करते हैं।

#कुछ लोग तब वामपंथी हो जाते हैं जब अमेरिका-यूरोप नही जा पाते हैं या फिर वीजा नही मिल पाता।

#कुछ तो झोला-कुर्ता ओढ़ते ही वामपंथी बन जाते हैं और समय-समय पर मार्क्स-लेनिन-माओ उच्चरित करते दिखते हैं।

#कुछ के कंधे तो इतने मजबूत होते है जो वामपंथ और दक्षिणपंथ को एक साथ सफलतापूर्वक ढ़ोते है।

#कुछ तो पंथी होते हैं वामपंथ वाले उनको दक्षिणपंथी और दक्षिणपंथ वाले उनको वामपंथी मानते हैं। जबकि कुछ को वामपंथ वाले वामपंथी और दक्षिणपंथ वाले दक्षिणपंथी मानते हैं।

नोट-- देहातों की बजाय दिल्ली में तथाकथित वामपंथियों की उपस्थिति/संघर्ष  और उनकी आपसी तू तू- मैं मैं पर टिप्पणी । इस टिप्पणी का जेनुइन वाममार्गियों से कोई और किसी भी तरह का संबंध नही हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें