सोमवार, 19 अगस्त 2013

कब्रगाह बनती स्कूलें , घंटा बनते मास्टर साहब...

मेरा एक मित्र दिल्ली में इन दिनों मास्टरी कर रहा है। दसवीं की भूगोल की क्लास थी। सामने के बेंच पर बैठे एक गंभीर से दिखने वाले विद्यार्थी से उसने पूछा कि गैलेक्सी क्या है ? बच्चे का जवाब था- नया वाला मोबाइल।

अब दूसरे मास्टर साहब और उनके चेले की कहानी सुनिए ---
मास्टर साहब ने क्लास में खड़ा करवाकर हर एक बच्चे से पूछा बताओ आगे चलकर क्या बनोगे । ज्यादातर बच्चों ने इंजीनियर, डॉक्टर और एकाध ने टीचर बताया। एक बच्चे ने कहा- आई एस आई का सीक्रेट एजेंट। मास्टर साहब अचंभित। कान-आंख-कांख के साथ दिमाग खुजलाते हुए पूछा- क्यूं भाई ? बच्चे का जवाब था देश के दुश्मनों को मारने के लिए। मास्टर साहब के दिमाग का खाज बढ़ गया और बच्चा था कि देशभक्ति के सार्वजनिक एलान के बाद फूलती धमनियों को किसी तरह जज्ब करता रहा।

आपको लगा होगा कि ये सब मनगढ़ंत है , लेकिन आप खुद भी इस नुस्खे को आजमा कर देख सकते हैं । दिल्ली से दरभंगा तक सरकारी स्कूलों का दौरा करें , सवालों के जवाब आपको ऐसे ही उटपटांग मिलेंगें। इससे इतर इक्का-दुक्का जवाब शायद ही आपको मिले। अभी हाल में ही कुछ विद्यालयों में नवीं-दसवीं की उत्तर-पुस्तिका से दो-चार हुआ। उत्तर और कॉमेडी लाफ्टर शो की स्क्रिप्ट में शायद ही आफ अंतर कर पाएंगे। मसलन ग्रह गोल होता है , तारा तिकोना होता है। हिमालय की उत्पत्ति के संबंध में कौन-कौन सी विचार धाराएं हैं का जवाब था- समाजवाद और कांग्रेस। (और आपको अब भी कोई शंका हो तो भारत में शिक्षा की हालत पर गैर सरकारी संगठन `प्रथम` की बासी और ताजा `असर` रिपोर्ट पर नजर डाल सकते हैं) ।अब आप पूछेंगें कि फिर छात्र उत्तरोत्तर अगली कक्षा में कैसे ? भाई साहब हर किसी को अपना परफॉर्मेंस बेहतर चाहिए... और फिर शिक्षक भी हम-आप जैसे इंसान ही तो हैं। मामला ठीक वैसा ही है जैसा क्राइम तो दिन दुना- रात चौगुना की रफ्तार से बढ़े, लेकिन थानेदार हो कि एफआईआर करने से ही इंकार कर दे।

कई दोस्त हैं, जो दिल्ली समेत कई राज्यों में मास्टरी में जुटे हैं। अक्सरहां ही उनसे बातचीत होती रहती है। केंद्रीय विद्यालय, सैनिक स्कूलों, नवोदय और गिने चुने विद्यालयों को छोड़ दे तो पाएंगें कि सरकारी विद्यालय खुद ही रास्ता भटक गए हैं। इन स्कूलों के प्रिसिंपल दाल-चावल की डंडीमारी में जुटे हैं या फिर बच्चों की वर्दी-किताब और दूसरी सुविधाओं पर कब्जा जमाने में। ठेका पर के शिक्षकों की हालत या तो बदतर है या फिर वो भी प्रिसिंपल को कुछ ले-देकर मजा लूट रहे हैं। उनके अनुपस्थिति का उपस्थिति में जादुई परिवर्तन शिक्षक-प्रिसिंपल दोनों के बीच प्रेम-सौहार्द को दिन-ब-दिन प्रगाढ़ कर रहा है। खैर खस्ताहाल शिक्षा-व्यवस्था की दरारों को और चौड़ा करने में सरकारी नीतियां भी कम गुनहगार नही। शिक्षकों के पद सालों से खाली पड़े हैं लेकिन भर्ती की जगह ठेका को नियम सा बना दिया गया है। अब आप ही बताइए इन चिप्पियों-पैबंदों से आखिर कब तक काम चलेगा ? स्कूलों में एक तो ठेके के शिक्षकों का नया अछूत वर्ग विकसित हुआ हैं, वही दूसरी ओर इन शिक्षकों में से अधिकांश की सीरियसनेस सिरे से गायब है।...और वैसे भी प्रिसिंपल साहब दाल-चावल की डंडीमारी करेंगें तो बाकी के शिक्षक कितने संजीदा होगें , कल्पना की जा सकती है।

समस्या केवल इतनी ही नही है। शिक्षकों को उत्तोरत्तर मंदिर के घंटे की तर्ज पर इस्तेमाल किया जा रहा है। बच्चों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी से लेकर जनगणना-मतगणना तक उनकी खूब जुताई होती है । पहले मिड-डे मील की जिम्मेदारी और अब फूड-टेस्टिंग की भी । कुछ दिनों पहले छपरा में करीब दो दर्जन बच्चों की मौत के बाद मिड-डे मील और शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक बहस उठी। आज इन बच्चों की कब्र उसी स्कूल में दफन है जहां घर के बाहर पहली बार बाहरी दुनिया में उन्होंने कदम रखा । कहते हैं हजारों साल पहले छपरा के इलाके में गौतम ऋषि का आश्रम था। इंद्र के फेर में उनकी पत्नी अहल्या यहीं अपने पति से शापित हुई और पत्थर हो बैठी । राम वनवास के दिनों में जब इधर से गुजरें तो अहल्या का उद्धार हुआ । ... शायद छपरा के गंडावन में अकाल मरे बच्चों और बीमार स्कूल की कब्र समाज औऱ सरकार को शिक्षा-व्यवस्था का उद्धार करने को प्रेरित करे। इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है।

पोस्ट-स्क्रिप्ट-
उम्र के इस पड़ाव पर रोजगार के साथ शादी के चर्चे-किस्से तो दोस्तों तो लाजिमी हैं। एक ठेके पर के शिक्षक के रिश्ते के लिए लड़कीवाले उसके घर पहुंचे। लड़के और उसके पूज्य बाबू का डिमांड आया- ग्यारह लाख का। ग्यारह अंक तो वैसे भी शुभ होता है आप तो जानते ही हैं। लड़की के भाई ने थोड़ी देर तक न जाने क्या-क्या सोचा और फिर लड़की के भाई ने लड़के वालों से सवाल पूछा आपके घर में कोई ब्याहने लायक लड़की है क्या ? अब लड़के वाले हतप्रभ ... पूछा क्यों ? भाई ने बोला हमारे घर में भी ठेके वाले चार-चार हैं और हम पांच-पांच में करने को तैयार है ?


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