सोमवार, 25 जून 2012

श्रद्धांजलि यानि रिन मार्का सफाई, सफेदी और चमकार

मृत्यू के बाद श्रद्धाजंलि का रिवाज है, श्रद्धासुमन अर्पित किए जाने का... और हां श्रद्धा दिखाने-जताने का भी। अक्सर ऐसा होता है कि मौत अपने साथ तार्किकता और सत्यता (संपूर्ण) की कैजुअल्टी के साथ आती है। गुण-अवगुण किसके नही होते हैं, स्वार्थों से कौन और कितने परे होते हैं, बचे होते हैं। चरित्र के श्वेत और श्याम दोनों ही पक्श होते हैं।... फिर मृत्यु आखिर हमारे विश्लेषण और तार्किकता की स्याही फीकी क्यों कर देती है ? मृ्त्यु के बाद समाज मानो इंसान को रिडिस्कवर करता है- व्यक्तित्व की धुलाई रिन सरीखी होती है, सफेदी और चमकार भरी, कमीज साफ ही मिलेगी, दाग-दुर्गंध मुक्त । विभिन्न कंपनियों में इंट्रव्यू के दरम्यान इस सवाल का चलन आजकल आम सा हो गया है- अपनी कमजोरियां बताइए... जवाब में अक्सर ऐसी बातें गिनाई जाती है आप भी गुण-अवगुण की परिभाषाओं पर नए सिरे से विमर्श को मजबूर हो जाएंगें। जब भी किसी शख्सियत का निधन होता है तो प्रशंसागान के फैशन से थोड़ी कोफ्त होती है। आज का अखबार उठया तो पन्ने देवआनंद साहब के लिए श्रद्धांजलियों से भरे थे , राजगीर में जॉनी मेरा नाम की शूटिंग के दौरान गेस्ट हाउस के केयरटेकर से लेकर बॉलीवुड की तमाम पर्सनाल्टियों तक की। इसमें कोई शक नही कि देवआनंद भारतीय सिने जगत के शीर्ष पुरुषों में से थे ,उनकी कई फिल्में क्लासिक श्रेणी की है लेकिन उन हालिया फिल्मों के जिक्र से परहेज क्यों जो कि कूड़ा कड़कट सरीखी थी। ऐसे में प्रभाष जोशी याद आते है और और याद आता है प्रमोद महाजन के निधन के बाद महाजन पर लिखा हुआ उनका लेख।....
पोस्टस्क्रिप्ट- बचपन में सुना था देव आनंद पर काले कपड़े पहनने की पाबंदी है, आखिर इतने हैंडसम जो थे। आज भी अपने यहां प्रभात खबर में इसका जिक्र देखा, पता नही कितना सही है।

(05Dec2011)

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