मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

नींद के पार उम्मीद ...

जब दिमाग के नसों की दीवारें
रक्त के तेज प्रवाह से चोटिल होती हैं
या फिर निर्वात की स्थिती सी बन जाती है
नसों की तरावट पर शुष्कता भारी पड़ने लगती है 
आंखों के तंतु देखने की बजाय
सोचने की प्रक्रिया से जुड़ जाते हैं
कुछ अतीत, कुछ वर्तमान और कुछ भविष्य के
दृश्यों-कल्पनाओं में उलझ जाते है
जब नींद बेहतर विकल्प लगता है
आप इसे पलायन कह सकते हैं

लेकिन एक उम्मीद भी जुड़ी होती है
कि शायद नींद के पार कुछ नया दिखे
कोई नया रास्ता मिले...

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