बाल्यावस्था से ही रामानंद सागर के रामायण की
खुराक मिलनी शुरु हुई और फिर रही सही कसर बी.आर. चोपड़ा की महाभारत के हैवी डोज ने
पूरी कर दी। बाकी जय हनुमान , जय गणेश , गंगा मैया तो थी हीं । बात बचपन की है , लेकिन सवाल अभी भी अपनी जगह है। जब भी राम-लक्ष्मण के सफाचट चेहरे को देखता तो एक बार दिमाग में जरुर घूम जाता कि
क्या शंकर सुपर सैलून टाइप (दलसिंहसराय का तत्कालीन टीप-टॉप सैलून) के दुकान
जंगलों में भी पाये जाते हैं ? … या फिर अयोध्या से चलते समय इन्होंने अपने झोले में उस्तरा भी रख लिया था।
जंगल में तप करने वाले विचरण करने वाले साधु-सन्यासिंयों की बढ़ी हुई दाढ़ी-मूंछ
के विपरीत भगवान राम का दाढ़ी-मूंछ विहीन चेहरा खटकता था। ज्यादा दिमाग दौड़ाता तो
लगता कहीं पाप तो नही कर रहा। वैसे भी दादी से पूछा गया हर सवाल इस ब्रह्मउत्तर के
बाद अपना अस्तित्व खो देता कि – अरे भगवान जी हतिन !!! ऐसे में उनसे इस सवाल के जवाब की उम्मीद क्या करता।
चुप ही रहा। साल शुरु होते ही कैलेंडरों को जमा करने का खूब जोश हम बच्चों में खूब
रहता। कमरे के कोने-कोने को हम देवता-देवियों की तस्वीरों से पाट देते। उन
तस्वीरों में भी अक्सर दाढ़ी-मूंछ तलाशने पर निराशा ही हाथ लगती। हां कुछ बुजुर्ग
टाइप के देवताओं की बात दूसरी थी। मसलन ब्रह्मा जी बढ़ी हुई दाढ़ी-मूंछ के साथ
दिखते, लेकिन आप ही बताइए राम, कृष्ण , विष्णु , शिव जी के सामने उनकी क्या बिसात।
एक बात और , अधिकांश दानवों के चेहरे दाढ़ी-मूंछ से भरपूर होते। अब ऐसा तो है नही कि
उनके यहां नाईयों ने हड़ताल कर दी हो। और फिर क्या असुरों की पत्नियों ने अपने
पतियों के चेहरे पर उगे घोंसलों पर आपत्ति नही की? कभी-कभी लगता है कि हो सकता है
आपत्ति की हो , लेकिन असुर तो असुर ठहरे। लेकिन फिर देवता भी तो पारिवारिक जीवन
में कोई खास डेमोक्रेटिक नही थे। लक्ष्मी जी हमेशा विष्णु जी के चरणों में ही नजर
आती हैं , माता सीता के कष्टों को कौन नही जानता।
समय बीता , उम्र
बढ़ी। धार्मिक धारावाहिकों की जगह शांति ,
स्वाभिमान का ट्रेंड शुरु हुआ और फिर तो टीवी पर तिकड़मी सासों-बहुओं ने कब्जा जमा
लिया। यह सवाल भी कहीं किसी कोने में दुबक गया। एम.ए. प्रीवियस के दौरान की बात
है। बड़ौदा स्कूल के नामी-गिरामी चित्रकार गुलाम मोहम्मद शेख के साथ दिल्ली में नैशनल
गैलेरी ऑफ मॉर्डन आर्ट घूमने का मौका मिला। कई चित्रों को बकायदा बैकग्राउंड के
साथ समझाया उन्होंनें। मिथिला पेंटिंग , कालीघाट पेंटिंग , बंगाल स्कूल आदि को।
कुछ पल्ले पड़ा कुछ भविष्य पर भरोसा कर सिर पर से गुजर जाने दिया। इसी दौरान भगवान
शिव की एक पेंटिग पर नजर टिक गयी। अपने चिरपरिचित नीले शरीर , कमर पर मृगछाला, सिर
पर जटाजूट तो था ही , लेकिन जो चीज खास थी , वह थी चेहरे पर मूंछ की मौजूदगी।
दिमाग उछलने लगा। झट से शेख सर से यह सवाल पूछ डाला। फिर पता चला कि पहले की
तस्वीरों में भगवान को मूंछे हुआ करती थी। फिर लगा कि यह सारा गड़बड़झाला भगवान के
भक्तों का पैदा किया हुआ है।
आखिर क्या वजह हो सकती है मूंछ-दाढ़ी के गायब हो जाने
की ? सच कहूं तो भगवान के भक्तों के इस
घोटाले को अब तक समझ नही पाया हूं। शायद आपके पास इसका जवाब हो ? यदि हो तो बताइएगा जरुर।
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