शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

रामाधीरों को रास्ता खाली करना होगा ...

"बेटा तुमसे ना होगा" ... सुनते-सुनते जे पी सिंह के कान-दिमाग पक गए। रामाधीर बरगद बना बैठा था, उस जमाने में भी जबकि धर्मेंद्र-देवानंद जलवा बरपा रहे थे सिनेमा से परहेज करता था। जे पी सिंह नए जमाने का था , लेकिन रामाधीर उसका बाप था जो उसी सामंती परंपरा का हिस्सा था , जहां बाप चिता में गुम हो जाने तक `बाप` बने रहने की जिद पाले रखता है। यह मामला महज जे पी सिंह बनाम रामाधीर सिंह का नही है , यह पीढ़ियों के बीच का संघर्ष है जहां बाप समय के साथ परिधि पर जाने से सिरे से इंकार कर देता है और बेटा संस्कारों की संकरी गली में घुटता रहता है । जे पी सिंह विद्रोही निकला जिसने संस्कारों के आगे घुटने टेकने से इंकार कर दिया। यह महज बाप-बेटे का भी मामला नही है , यह गुरु-चेले के बीच का मामला भी हो सकता है। यह हर उस परिस्थिति की परछाई है जिसमें पुराना अपने पांव अंगद के माफिक जमा रखना चाहता है , वरिष्ठता की चाबुक बरसाता रहता है और सामने वाले से उफ तक न कहने की उम्मीद रखता है । वासेपुर की दुनिया किसी मंगल ग्रह की छाया नही है , हमारे बीच की कहानी है। ताजा मामलों में बीजेपीपुर में इसकी परछाई दिखाई दे रही है तो कोई आश्चर्य नही। आखिर जे पी सिंह के सामने विकल्प कौन-कौन से थे आखिर कब तक संस्कारों के चक्रव्यूह में अपनी महत्वाकांक्षा का गला घोंटता। ऑटोमेटिक हथियार, शार्प शूटर , शाहरुख-सलमान से लैस लेकिन रामाधीर की इच्छाओं पर कठपुतली की तरह नाचने को मजबूर।

राजनीति हो या कारोबार या फिर हमारा-आपका घर ... आखिर कब तक उन संस्कारों को ढ़ोए जो बदले जमाने के साथ आउटडेटेड हो गए हैं। ज्वाइंट फैमिली न्यूक्लियर फैमिली में कंवर्ट हो रही है जिसमें हर एक अपनी उड़ान अपनी मर्जी से तय कर रहा है, नयी कंपनियां स्थापित हो रही है जहां रिश्तों की बजाय प्रोफेशनलिज्म जगह पा रही है , बच्चें अभिभावकों की सार्वकालिक इच्छा डॉक्टर/इंजीनियर की बजाय नए क्षेत्रों में अपनी मर्जी से विचर रहे है, ऐसे में इतिहास पर प्रलाप भविष्य को बेहतर बनाने की बजाय बदतर ही करेगा।

आडवाणी कोपभवन है और चेले मान-मनौव्वल में जुटे हैं। यह तो आडवाणी जी को भी पता है समय किसी का इंतजार नही करती और न ही कहीं ठिठक सकती है। ऐसे में जिद की भी एक सीमा है , जिससे परे इतिहास भी धूमिल होगा , भविष्य की क्या कहिए ? उन्हें समझना होगा कि यह जे पी सिंह का समय है जो अपनी बारी के इंतजार में बुढ़ा रहा है।


नोट- इस पोस्ट का किसी भी खास विचारधारा से कोई लेना-देना नही है

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