कुहासे की ठेलमठाल
और खून को गर्म करता
सर्द सच
झूठ के कई चेहरे हैं
कुछ सच की खाल में
जैसे की भेड़ की खाल में भेड़िया
और कुछ सच
जिसके साथ कुछ किंतु-परंतु हैं
कुछ इतिहास की करतूत
कुछ वर्तमान की पैदावार
सच और झूठ के बीच
न्याय त्रिशंकु की तरह हवा में लटका है
दिमाग और दलदल का फर्क मिट गया है।
और खून को गर्म करता
सर्द सच
झूठ के कई चेहरे हैं
कुछ सच की खाल में
जैसे की भेड़ की खाल में भेड़िया
और कुछ सच
जिसके साथ कुछ किंतु-परंतु हैं
कुछ इतिहास की करतूत
कुछ वर्तमान की पैदावार
सच और झूठ के बीच
न्याय त्रिशंकु की तरह हवा में लटका है
दिमाग और दलदल का फर्क मिट गया है।